चाहतों का कोई हिसाब ही नहीं होता, चाहते तो होती है एक बेहिसाब सोता। अरमानों को पूरा करना हमेशा बस में नहीं होता, कोई चाहतों की गठरी को ज़िंदगी भर ढो़ता। जी सके अपने सपनों के संग हर आदमी ऐसा नहीं होता, किसी के माथे ज़िम्मेदारी किसी के माथे मज़बूरियों का पुलिंदा रहता। टीस रहती है ज़िंदगी भर क्यों हर स्वप्न पूरा नहीं होता , सब कुछ पूरा हो जाता तो यूँ 'अनाम' रहने का मज़ा कहाँ होता। #रमज़ान_कोराकाग़ज़ चौथे दिन की रचना सोता :- जल की बहती हुई धारा या झरना #anumika