मुहब्बत करने वाला ज़िन्दगी भर कुछ नहीं कहता, कि दरिया शोर करता है समन्दर कुछ नहीं कहता। तो क्या मजबूरियाँ बेजान चीज़ें भी समझती हैं, गले से जब उतरता है तो ज़ेवर कुछ नहीं कहता। बड़ा गहरा नशा होता है मैदानों में मरने का, कि जाँ देते हुए लश्कर का लश्कर कुछ नहीं कहता। हमारी इल्तजाएँ बेज़बाँ बच्चों की जैसी हैं, बज़ाहिर तो किसी से रेत का घर कुछ नहीं कहता। हमेशा सब्र को रुस्वा किया है भीगी आँखों ने, ज़रूरत चीख़ पड़ती है गदागर कुछ नहीं कहता, मेरे दिल से मेरे चेहरे का समझौता मज़े का है, ये अन्दर कुछ नहीं कहता वो बाहर कुछ नहीं कहता। 🖋मुनव्वर राना #दरिया_शोर_करती_है