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इक बस यादें हैं जो मुझसे मुंँह नहीं मोड़ती, कितना

इक बस यादें हैं जो मुझसे मुंँह नहीं मोड़ती,
कितना भी परे धकेलूंँ पीछा नहीं छोड़ती,
रातों को जग जग के मुझे ताकती हैं,
नींदों को दूर भगा, आंँखों में झांँकती हैं,
कहती हूंँ, तुमसे अब कोई वास्ता नहीं,
पर ये भी ज़िद्दी हो कहती हैं,
तेरे दिल के सिवा, मेरा कोई रस्ता नहीं,
मान करूंँ, मनुहार करूंँ, चाहे इनपे वार करूंँ,
पर ये जम के बैठी, कहती इनसे प्यार करूंँ,
फिर मैं भी थक इन्हें तकिए के सिरहाने,
छोटी डिबिया में बंँद कर, अपनी आंँखें मूंँद लेती हूंँ,
शायद किसी रोज़, ख़ुद ही उस डिबिया का,
ताला तोड़ सोचे, चलो अब नया घर ढूंढ लेती हूंँ। यादें भी ढ़ीठ सी हो जाती हैं अक्सर!
इक बस यादें हैं जो मुझसे मुंह नहीं मोड़ती,
कितना भी परे धकेलूं पीछा नहीं छोड़ती,
रातों को जग जग के मुझे ताकती हैं,
नींदों को दूर भगा,आंखों में झांकती हैं,
कहती हूं,तुमसे अब कोई वास्ता नहीं,
पर ये भी ज़िद्दी हो कहती हैं,
तेरे दिल के सिवा,मेरा कोई रस्ता नहीं,
इक बस यादें हैं जो मुझसे मुंँह नहीं मोड़ती,
कितना भी परे धकेलूंँ पीछा नहीं छोड़ती,
रातों को जग जग के मुझे ताकती हैं,
नींदों को दूर भगा, आंँखों में झांँकती हैं,
कहती हूंँ, तुमसे अब कोई वास्ता नहीं,
पर ये भी ज़िद्दी हो कहती हैं,
तेरे दिल के सिवा, मेरा कोई रस्ता नहीं,
मान करूंँ, मनुहार करूंँ, चाहे इनपे वार करूंँ,
पर ये जम के बैठी, कहती इनसे प्यार करूंँ,
फिर मैं भी थक इन्हें तकिए के सिरहाने,
छोटी डिबिया में बंँद कर, अपनी आंँखें मूंँद लेती हूंँ,
शायद किसी रोज़, ख़ुद ही उस डिबिया का,
ताला तोड़ सोचे, चलो अब नया घर ढूंढ लेती हूंँ। यादें भी ढ़ीठ सी हो जाती हैं अक्सर!
इक बस यादें हैं जो मुझसे मुंह नहीं मोड़ती,
कितना भी परे धकेलूं पीछा नहीं छोड़ती,
रातों को जग जग के मुझे ताकती हैं,
नींदों को दूर भगा,आंखों में झांकती हैं,
कहती हूं,तुमसे अब कोई वास्ता नहीं,
पर ये भी ज़िद्दी हो कहती हैं,
तेरे दिल के सिवा,मेरा कोई रस्ता नहीं,