ग़ज़ल के शहर में वो घर ढूंढते हैं मुसलसल वो शामों सहर ढूंढते हैं रदीफों के मेले में नज़्में भुला कर बड़ी मुख़्तसर वो बहर ढूंढते हैं मुहब्बत भी कर डाली आंसू भी पीये ग़ज़लगोई का अब हुनर ढूंढते हैं कई काफ़ियों से सजा डाले मिसरे वो गालिब सा बस अब असर ढूंढते है #YQdidi #अंजलिउवाच #ग़ज़ल #ग़ालिब #ढूँढतेहैं #रदीफ़ #मिसरा