आँखों से पढ़ न सके जाने क्यूं आँखें भी रो देती , ज़ुबान से कहें ना बेशुमार वो मोहोब्बत तो करती। नादान-दर्द-ए-जुदाई का सितम व कुछ ऐसा हुआ, बेबाक़ ज़िंदगी मसरूफ़ होता न जो आलम हुआ। आरज़ू चाहतों कि बेफ़िक्री नुमाइशो से कर पाईं, दर्द-ए-ह़यात दिल ए-वफ़ा आजमाईशो कि आईं। छाने लगी मोहोब्बत अब जिसके मगरुर इश्क़ से, वफ़ाओ कि नादानियां उफ्फ करती खा़मोशियाँ। ख़्यालात अश्कों को बेवफा़ओं से भिगोना आया, "हार्दिक" मोहोब्बत करना थी जिसे करना आया। 😊✍️✍️हार्दिक महाजन ©hardik Mahajan #Aasmaan