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मुक्तक: मन के पन्ने भावों  की  नगरी  में  निशदिन

मुक्तक: मन के पन्ने


भावों  की  नगरी  में  निशदिन, अंगारे  दहके।

मन के  पन्ने  कुतर  रहा है, वक्त  स्वयं चलके।

आशाओं  की  गठरी  बांधे, घूमें  नित्य  पवन।

अंतस में चुपचाप दामिनी, घुट घुट के चमके॥

©दिनेश कुशभुवनपुरी
  #Chess #मुक्तक #मन_के_पन्ने kanta kumawat RD bishnoi सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र) -"Richa_Shahu" Anupriya