कभी टूटती हूँ, कभी तोड़ी जाती हूँ , इंसान हूँ में, जज़्बात रखती हूं। कभी बोलती हूँ, कभी मजबूर की जाती हूँ, औरत हूँ में, दर्द-ए-बयां कर रही हूँ।। पता को भी न पता है, की हम लापता है। वक़्त को भी न पता होगा, हम मुस्तकबिल की बातें क्यों बयां कर रहे हैं। जिंदगी अगर इसी का नाम है, खुशनसीब है वह जिन्हें यह पैगाम मिला है।। #life #jindgi_ki_kitab