आज कलश उठाया हाथ में पर मनहूसियत से वो भी खाली निकली सोने का चिराग समझा जिसको कमबख्त ,वो भी मिट्टी की प्याली निकली सवाल हैसियत पर था उठा क्योंकि ,इंसानियत से बेसुरी कव्वाली निकली बहुत बुरा हस्र हुआ रखवाले का क्योंकि ,मुसीबत लाने वाली खुद रखवाली निकली ना सोच साबित हुआ सत्य ना विश्वास भावित कोई प्रणाली निकली जहाँ सत्य असत्य का होना निर्णय वहीँ सफ़ेदी अदालत के समय काली निकली गोधूलि बेला निःवस्त्र था पापी के हाथ जो शस्त्र था ना सुबह दिनकर की लाली निकली ना रात चाँद-चाँदनी की सवारी निकली कलश खाली,सोने की प्याली सफेदी सत्य असत्य से काली ना कोई सुबह ना दिनकर की लाली यहीं तो है मनहूसियत ,मनहारित, फँसा मानव और उनका संघर्ष -प्रणाली।।। ©Deependra jha #kalashkreates #कलश #efforts