प्रत्यूषा में उठने वाली कोयल की पहली कूक में तुम, भोर पीपासा को तर करते पानी के पहले घूंट में तुम, स्वर्ण रश्मीयों से होता जो प्रेम के आलिंगन में तुम, शीश अलक को सेहलाते से शीतल मंद पवन में तुम, चाय की प्रथम चुस्की से मिलती सकल ऊर्जा में भी तुम, मंदिर गवाक्ष के ध्वनि में आते आरती पूजा में भी तुम, हर प्रातः प्राण मिलते जिससे उस ऊर्जावान आकाश में तुम, हर पल मन में जो ख़ुशी देता उस प्यार भरे आभास में तुम हर श्वास के संग समाती जो जीवन की प्राण वायु में तुम, हर पल मेरे संग बिताती हर क्षण कटती आयु में तुम, जो सूर्य समर्पित होकर देता पोषण हेतु उस ताप में तुम, सौंधी मिट्टी की खुशबु का हेतु धरती औ बूँदों के मिलाप में तुम धरती से उपज जो अन्न बने अस्थि मज्जा और रक्त में तुम तुम ही ईश्वर तुम ही पूजा और हो व्याप्त उस भक्त में तुम, ये दिन भी तुम्ही से होता है हर पल हर वक़्त हर रात में तुम हर ख्याल में तुम ही रहते और मेरी हर बात में तुम, एक प्रयास लिखने का है जीवन में क्या महत्व तुम्हारा है, इस देह के पांच तत्व में भी एक छठवां तत्व तुम्हारा है #अनछुए हर्फ ©Abhinav Shrivastava #shaadi