"अरे सुनती हो, तुम्हारे बाबूजी का फ़ोन आया था। कह रहे थे कि बीमार हैं। जैसे कभी अपनी बीमारी के अलावा भी कभी दामाद को फ़ोन घुमाते हैं क्या?" (पापा चिल्ला कर बोले। अख़बार उनके पास मुड़ा हुआ पड़ा था। मम्मी रसोई में थीं। सुनकर दौड़ीं आयीं।) का हुआ हमरे बाबूजी को? उनको का मालूम ईहाँ ताना दीहल जात बा। बहुत बढ़िया दामाद का काम बा ई।" "अच्छा तो मेडिकल कॉलेज कौन ले जाता है उनको हर बार? तुम्हारे भाईसाहब?" "अरे हम सब बूझिला, ई ना सोचा हम्मे कुछ मालूम नाहीं। मुन्ना बताये रहा तुम्हरे मेडिकल कॉलेजेवा में का गुल खिल रहा। ऊ बचवा लोगन के बारे में हमहूँ सब पढ़लें हईं। अऊर हमरे भाई कौनों कलेक्टर नाहीं जऊन तुम कहि रहे।" "तो तुम कह रही हो कि हमारी वजह से उनकी तबियत बिगड़ रही है। तो अब तक मर क्यों नहीं रहे?" "ऊ ए लिए के बाबूजी के आधार कारड नाहीं बनल अबहिनलें। ना ही तै हम तोहार के पहिचानिला। ऊ बगिचवा तोहरे नाम ना होई, चाह जेतना दौड़ धूप कई लौ, गुप्ताइन संघरी तुहार नैन मट्टका के बात कौनों से छुपल नाहीं।" (अबकी मम्मी पैर पटकते हुए गयीं वहाँ से। पापा हैरान हो कर उन्हें जाते हुए देखते रह गए।) #गोरखपुर_से #YQbaba #YQdidi #Politics #गोरखपुर #मेडिकलकॉलेज #आधार #कार्ड