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हुं मैं नीरव पथिक, कर हासिल मंजिल को एक दिन सोर म

 हुं मैं नीरव पथिक,
कर हासिल मंजिल को एक दिन
सोर मचाऊंगा मैं।
हुं मैं जीव एक बिन प्रकाश,
कर आलिंगन हर उस किरण को
एक दिन लाखों
जुगनू सा चमक उठूंगा मैं।
हूं मैं शुन्य शरीर ही बस,
ढेरों उम्मीदों के पंख
सजाए अंग पर मेरे
विहंग सा उड़ान भरूंगा मैं
एक दिन ऊंचे बादलों को चूमूंगा मैं।

©Ram Majumdar
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Ram Majumdar

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