कहो? कहां समेटू अपनी बेचैनियों को जो इस प्रहर निहारता है, शांत होते हैं सभी और अंखियन तुम्हें पुकारता है सो चुके होंगे तुम कहीं अब मेरी पलकें ये कैसी राह निहारता है लौट जाती है रात्रि यूं ही फिर एक नई आस क्यों इस दिल को भाता है लौट आओ तुम ये कहां लब्ज कह पाता है फिर ये दूरियों को क्यो हदय सहेज लाता है Priya prasad ✍️ ©Priya Prasad #safarnama मेरी बेचैनियों का