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जबसे चलना सीखा है, तबसे थमना भूल गए जबसे आवाज़ ऊंच

जबसे चलना सीखा है,
तबसे थमना भूल गए
जबसे आवाज़ ऊंची हुई,
तबसे चुप रहना भूल गए
आगे बढ़ते बढ़ते,
घर पीछे छूट गया
नए रिश्तों में बंध के,
पुराना रिश्ता टूट गया
खुद को दूंढते ढूंढते,
कैसे खो गए हम
जब बड़े हुऐ तो,
अपनो से अलग हो गए हम
बचपन की शरारत,
बचकानी सी लगने लगी
जज्बातों की लहर,
बेगानी सी लगने लगी
एक वक्त था,
जब दिल के हालात आंखो से उतर जाते थे
अब वक्त ऐसा है की एक आंसू नहीं गिरता,
अंदर ही अंदर दिल टूट के बिखर जाते है
जबसे जिंदगी की भाग मैं दौड़े है,
तबसे गिरते ही चले जा रहे है
जबसे जज़्बात छिपाना सीखा है,
तबसे अंदर ही अंदर टूट के बिखरते चले जा रहे है
कोई तो गले से लगा लो,
ताकि आसानी हो जीने मे
जब बुरा सपना आता था,
तो जैसे मां लगा लेती थी सीने से
कितना भारी हो गया है दिल,
संभालना मुश्किल हो गया है
जब कुछ बिगड़ने से पहले ही पापा संभाल लेते थे,
वो बचपन कहा खो गया है
आज सब कुछ है,
तो कोई नहीं है जिन्दगी बाटने के लिए
यादो में है वो वक्त,
जहा पे सब साथ थे वक्त काटने के लिए
सब कुछ सही था बचपन में,
जब दुनिया छोटी सी थी हमारी
पापा की परछाई से शुरू होकर,
मां की गोद पे खतम हो जाती थी सारी
अब तो पैर थक गए हैं चलते चलते,
पर वो खुशियां नही मिलि जो घर पे पीछे छूट गई
जबसे बड़े हुए,
ऐसा लगता है जैसे हमसे जिन्दगी रूठ गई ।

©Manashvi Chandra
  जिंदगी की दौड़ में । 
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manashwichandraa7013

Avi

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