रोना कब चाहा था मैंने ये तो तुम्हारी अदा का सिलसिला ऐसा बना हुआ था तुम्हे परेशां कर खुद परेशां रहना सीखा कब था मैंने ये तो तुम्हारा सारा कसूर था चाहा नही था मैंने तुम्हें इतना सताना भी ये सारी पहल को मंजूर किया किसने था? अपनाकर मेरी नादानी को कईबार बढ़ावा भी तुमने आखिर दिया क्यों था? होती रही अगर तुम्हें इतनी परेशानी हमारी आदतों की मजबूरी से अब तो शामिल कर मुझे अपनी जिंदगी में ऐसा दिली अपनापन दिया ही क्यों था गलती कर खुद ही मुझे अपनाकर अब भला खुद को कोसते क्यों हो? इतना ही हो रहा दर्द तुम्हे मेरे होने से तो निकाल क्यों नही देते अपनी जिंदगी से दर्द हमें भी होता है तुम्हारी इस बेरुखी से हरपल जब दिल को दुःखाते हो क्या वजह रहती है ये हम कैसे जाने कोई वजह भी कहाँ जो मिलती है नाराजगी कर भी रही हूं अगर तुमसे तो बेमतलब की कहाँ कर रही हूँ तुमने दिये थे जब हक सारे तब ही तो इतराने लगी हूँ आजकल मैं अब कितना और समझाऊँ तुम्हें तुम अनजान रह मुझे रुलाने लगे हो बिन खता के कुछ भी न जाने क्यों ऐसी सजा दिए जा रहे हो तुम मुझे nojoto app#पोएट्री#ख्याल#नाराजगी#दिल#