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#OpenPoetry मेरी फरमाइश पर एक गीत, मुझ पर भी लिख द

#OpenPoetry मेरी फरमाइश पर एक गीत,
मुझ पर भी लिख दो ना,
ज़ुल्फो में मेरी ,
रंग सुनहरा भर दो ना,
और कर दो मेरी आंखों को
किसी झील सा गहरा तुम,
अजनबी सी रहती हूं तुमसे मैं,
मेरा दर्जा अपनी प्रेयसी का कर दो ना।

छिपा कर लिखते थे जो तुम नाम मेरा,
वही लुक्का-छिपी
एक बार और कर दो ना।

तुम्हारे हर गीत में
आज भी ढूंढती हूँ मैं नाम मेरा,
पहले तो लिखते थे,
अब आखिरी बार ही सही,
एक दफा और लिख दो ना।

सुना है,
तुम हो शायर अलग ख्वाब के,
उस ख्वाब में एक ख्वाब
मेरा भी भर दो ना,

तुमसे मिलने को बनाती हूँ झूठे बहाने मैं,
प्रेम समझो और
वो झूठ पकड़ लो ना।

तुम मुझे पाने से पहले
कुछ बनना चाहते हो,
पाके मुझे,
फिर कुछ बन जाओ ना।
शर्मीले हो,
इज़हार तो तुम करोगे नही,
अगर मैं करु तो 'हा' तुम कर दो ना।

मेरी फरमाइश पर एक गीत,
मुझ पर भी लिख दो ना। #OpenPoetry 


मेरी फरमाइश पर एक गीत,
मुझ पर भी लिख दो ना,
ज़ुल्फो में मेरी ,
रंग सुनहरा भर दो ना,
और कर दो मेरी आंखों को
#OpenPoetry मेरी फरमाइश पर एक गीत,
मुझ पर भी लिख दो ना,
ज़ुल्फो में मेरी ,
रंग सुनहरा भर दो ना,
और कर दो मेरी आंखों को
किसी झील सा गहरा तुम,
अजनबी सी रहती हूं तुमसे मैं,
मेरा दर्जा अपनी प्रेयसी का कर दो ना।

छिपा कर लिखते थे जो तुम नाम मेरा,
वही लुक्का-छिपी
एक बार और कर दो ना।

तुम्हारे हर गीत में
आज भी ढूंढती हूँ मैं नाम मेरा,
पहले तो लिखते थे,
अब आखिरी बार ही सही,
एक दफा और लिख दो ना।

सुना है,
तुम हो शायर अलग ख्वाब के,
उस ख्वाब में एक ख्वाब
मेरा भी भर दो ना,

तुमसे मिलने को बनाती हूँ झूठे बहाने मैं,
प्रेम समझो और
वो झूठ पकड़ लो ना।

तुम मुझे पाने से पहले
कुछ बनना चाहते हो,
पाके मुझे,
फिर कुछ बन जाओ ना।
शर्मीले हो,
इज़हार तो तुम करोगे नही,
अगर मैं करु तो 'हा' तुम कर दो ना।

मेरी फरमाइश पर एक गीत,
मुझ पर भी लिख दो ना। #OpenPoetry 


मेरी फरमाइश पर एक गीत,
मुझ पर भी लिख दो ना,
ज़ुल्फो में मेरी ,
रंग सुनहरा भर दो ना,
और कर दो मेरी आंखों को
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