तन्हाइयों का हुजूम ,क्या महफ़िल है , कुछ रिश्तों की खीजन, कुछ ज़द में दिल है , कहीं दूर से आया कोई इल्ज़ाम बे - ग़ैरत , सज़ा-ए-अश्क दूं किसे , बड़ी मुश्किल है , अरे हम तो हैं अहले - सुखन , हम ही बेज़ार हैं , जश्न-ए-अमीरी में कहां सुकुं हासिल है , ये अश्क भी छलके हैं बड़े गु़रूर से , कई दर्द सोखता है ,वो बड़ी फाजिल है, बड़ी खामोश हैं रातें , कुछ सदाएं चीखती हैं , कुछ रास्तों के ठोकर अब भी हासिल हैं , कुछ हश्र भी खड़े हैं ,हो के मग़रुर , ज़रा जगह दो उन्हें , वो भी शामिल हैं , के ये दिल नहीं बहरे - ज़ुल्मात का घर है , बे-फ़िज़ूल तुम कहते हो, ये शायर का दिल है । ©s.s.saumya #OneSeason #nasm #Dard_e_dil #tanhaiyan