आरजुओं ने हर किसी दिल को दर्द बँटे है, कितने घायल है, कितने बिसमिल है.... ....हम भटकते है, क्यू भटकते है? दस्तो शहरा में..... ऐसा लगता है मौज प्यासी है, अपनी दरियाँ में। कैसी उलझन है, क्यू ये उलझन है? कह नही सकते किसका अरमा है.... जिंदगी जैसे खोई-खोई है....हैरा-हैरा है...... ऐ-दिले-नादान......