ले आज मैं देता हूँ, तुझे एक पल अदायगी का; लेकिन वापस लेता हूँ तुझ से, हक़ खुली आँखों का ।। सो जा ऐ ख्वाब ! तू इतिहास हो चला मेरी अँगड़ाई तले, तू बड़ा हुआ ।। एक मीठा गीत जो, मैं तुझे सुनाता हूँ । आगे यादों से तू बढ़े, यही मैं चाहता हूँ ।। वक़्त - सादगी से परे, असंख्य क्षणों में हमारे सम्मुख सुविधा और दुविधा का खेल रचता है । यह ख्वाब ही हैं जो इस वास्तविकता से परे अलग विलीन होते हैं । यह मेरे या वक़्त के हैं यह तो नहीं जानता । पर अगर वक़्त उन्हें सुलायेगा तो क्या कहेगा यह ज़रूर सोच सकता हूँ । Ayena मैम के दिए इस चुनौती में एक #लोरी लिखने का बड़ा जिम्मा मैं सीधे सीधे पूरा करने में असक्षम हूँ । न तो मेरे पास वो तजुर्बा है के मैं एक माँ की ममता का वर्णन कर सकूँ और न ही वो दृष्टि जो मुझे उसके काबिल बनाये । यहाँ वक़्त के भावों को दर्शाने के