वटवृक्ष तले मैं खड़ा अकेला...... बिल्कुल चुप बिल्कुल खामोश। करता रहा इन्तेजार मैं तेरा। पर तू ना आया लौट दोबारा।। थक गयीं अंखियाँ राह ताकते। पूरब-पश्चिम हर तरफ झाँकते।। सुबह से शाम होनें को आयी। बस मेरी तन्हाई साथ रोनें को आयी।। माना कि मुझको भूल गए तुम। छोड़के मुझको फिजूल गये तुम।। क्या अपनीं बफा भी याद नहीं है। ये कोई द्वन्द,विवाद नहीं है।। तू होता तो शायद मेरी सारी पीड़ा हर लेता। शायद आँखों-आँखों में मेरे संग तू क्रीड़ा कर लेता।। पर सूरज की किरणें छुपनें तक तुम मेरे पास नहीं आये। दुआ है मेरी तेरी ज़िन्दगी में कभी कोई "काश" नहीं आये।। मेरा उतरा हुआ चेहरा देखकर आज बरगद मुझसे बोला है। तू अंजान है अभी मोहब्बत से तू सीधा है तू भोला है।। फिर बरगद नें धीरे से कहा तू रो मत मेरे यार। तेरा साथ मैं कभी ना छोड़ूँगा जैसे छोड़ गया तेरा प्यार।। वटवृक्ष तले मैं खड़ा अकेला...... बिल्कुल चुप बिल्कुल खामोश। करता रहा इन्तेजार मैं तेरा। पर तू ना आया लौट दोबारा।। ©Viswa Sachan #वटवृक्ष_तले_मैं_खड़ा_अकेला__❤️😘❤️😘❤️😘❤️😘