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कुंडलियाँ कैसा ये माहौल है,नहीं किसी को शर्म। ज

कुंडलियाँ


कैसा ये माहौल है,नहीं किसी को शर्म। 
जेबें अपनी है भरे,समझ इसी को धर्म।। 
समझ इसी को धर्म,जुल्म वह करते जाते। 
सुनें नहीं वह एक, हुक्म वह खूब चलाते।। 
लूट भरे बाजार,गरीबों का वह पैसा। 
वर्दी धारी मौन, आचरण ये है कैसा।।

©Usha bhadula #beautifulhouse कुंडलियाँ
ushabhadula1560

Usha bhadula

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