ज़िन्दगी भी अब सवाली हो गई मौत तो बस खयाली हो गई सोचते थे सो जाएंगे एक दिन तेरा आँचल ओढ़कर मगर दुपट्टे की शक्ल भी अब निराली हो गई जिक्र होता है जहन में तेरी आँखों का बूंदे ये आंख की तेरे होंठों की लाली हो गई अंगूठी जो फिसली उंगली से तेरे कानों की बाली हो गई याद आती है वो तेरी तस्वीर वाली चुनरी अब मेरे होंठों की प्याली हो गई याद आयी जो तेरी आज जी भर के एक और बोतल खाली हो गई ज़िन्दगी भी अब सवाली हो गई मौत तो बस खयाली हो गई शाहिर शंकर शिंदे