"उस करिश्में का इंतजार, क्यों मन करे रे बाँवरे। नहीं है बाक़ी कुछ जहाँ, सोचे दिन रात तू उसे क्यों!! लौट आएगा क्या, गया एक बार जो। वो तो था ही न तेरा कभी क्यों फ़िर ताके उसे नयन एकटक हरपल। क्यों मन करे रे बाँवरे फ़िर उस करिश्में का इंतजार..!!" #सुचितापाण्डेय OPEN FOR COLLAB✨ #ATकरिश्मेकाइंतज़ार • A Challenge by Aesthetic Thoughts! ♥️ Collab with your soulful words.✨ Transliteration: Uss karishme ka intezaar