अवनी को अश्रुपूर्ण श्रद्धांन्जली ,ॐ शान्ती उन्हे जंगली ही दो रहने एक अकेली बाघिंन माँ को मार कर बनते तीरन्दाज हो रख दो कभी बंदूक नीचे फिर देखें जंगल मे किस की आवाज हो घुस के अवनी के घर तुमने धोके से उसको मारा घुसपैठिये तुम हो और कहते हो उसने इंसानों को मारा घुसपैठ जंगल मे हम इंसान है करते ये कहा का न्याय भोले भाले जानवर उनके घर मे ही मरते कभी कभी सोचता हूँ की सभ्य कौन है आज एक बाघिंन माँ की मौत पे पूरी दुनिया मौन है क्या था जुर्म उसका क्या था उसका अपराध कितने दे संसाधन उसके पकड़ने के फिर भी तुम बन गए जंगली व्याध ये प्रकृति का नियम है वो पहले सहती है पर अगर पार हो जाये हद तो उसकी प्रलय की कहानी खुद धरती माँ कहती है समय आ गया होने का सावधान अब मत डालो प्रकृति के चक्र मे व्यवधान ज़ियो और दो जीने जंगल घर है उनका उनको जंगल मे ही दो जीने खुद ही सभ्य बन जाओ उन्हे जंगली ही दो रहने हाथ जोड़ के हूँ कहता उन्हे जंगली ही दो रहने ©शिवम मिश्र