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ललक सोचूँ मैं हर बार ही, क्या दूँ अपने भाव। शब्दो

ललक

सोचूँ मैं हर बार ही, क्या दूँ अपने भाव।
शब्दों की असमर्थता, दे जाती है घाव।।

उसमें ही उलझा रहूँ, ये मेरा अनुराग।
कहता मैं देवेश हूँ, जीवन का यह भाग।।

©Devesh Dixit 
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