मेघा जब तू बरसती है,।।।। हाल ए दिल क्या बताऊं, पर्वतों का ,जंगलों का, ,देखा मैंने जब आंखो से तब जाकर ये एहसास हुआ। नदियों को इठलाते बलखाते देखा,पहाड़ों की गोद से झर झर करते झरना बन के गिरते देखा, मैंने पंक्षियों को अलग ही आनंद में ,चहचहाट से पर्वतों को गीत सुनाते देखा, बादल भी कहा कम थे, खेलने का मिजाज लिए पर्वतों। के साथ आंखमिचौली करते रहते,, फिजा में यहां की अजीब सा सुकून हवा भी अपनेपन का कुछ एहसास लिए देखा।। मेघा जब तू बरसती है।।।।।।।। एहसास हुआ कुछ ऐसा प्रकृति खुद को यूं ही संवारती है, हाल ए दिल क्या बताऊं ।। मेघा जब तू बरसती है।।।