कुछ पल मैं, वक्त से चुराती गई, अपने बटुए में , सबसे छिपाती गई, खुश थी कि कुछ, पूँजी जमा हो गई, मेरे ख्वाहिशों की, कीमत अदा हो गई, कभी फुर्सत से, जोङूँगी अपना हिसाब, फिर खरँचूगी , वो पल मैं, कभी बेहिसाब, उन पलों को खर्चने के लिऐ, जब मैं चली, तब तक मेरी , उम्र भी थी ढली, पर बटुए में ढेर, पल ही पल थे भरे, मर चुके थे वो शौक, जिनके लिए कभी, वो पल थे धरे । ©purvarth #चुराये हुए पल