जो मज़ा आए फ़कीरी में,वो मस्ती कहाँ अमीरी में ये दुनिया मुसाफ़िरखाना है,क्या रक्खा है दौलत और जागीरी में तेरे पास जो खज़ाना है,वो मिट्टी हो जाना है आ अब वापस लौट चलें,बचपन की उस गर्म दुपहरी में हम पेड़ पे बैठे पंछी हैं,एक दिन सबको उड़ जाना है लाख लगा लो ताले तुम,राज़ दफ़्न हैं सब शाम सिंदूरी में कुछ यार जोड़, कुछ प्यार लुटा,क्या मिला शराफ़त की बेशऊरी में वो स्वाद न छप्पन भोग में है,जो है प्यार की पंजीरी में चाहे सिक्कों की झोली भर ले,सब मिट्टी हो जाना है थोड़ी जान लगा और नाम बना,क्यूं फंसा है राग और कस्तूरी में जीवन गणित सा उलझा है,सांसें घटती जाती हैं लोग लगाते रहते हैं गुणा-भाग,क्या रक्खा है इस आलमगीरी में... © trehan abhishek #फ़कीरी #manawoawaratha #कोराकाग़ज़ #yqaestheticthoughts #yqrestzone #yqdidi #hindipoetry #hindishayari