*मेरु पहाड़* मेरी अलग पहचान ची ; मैं उत्तराखंडी छो , जाणा छीन लोग मीता छोड़ी यख बतीन। कुछ यख छीन मेरा भूमयाल मां, क्वै क्वै लुकारी मैमा जान माया शक्ति ची। गो खाली वैग्या जन विनाश वैगी होलू मेरू , यूँ आँखी तरसी तूता देखरो आज भी । कुछ लोग घोर कुड़ी पुंगरी छवारी यन चलया, जन तुन पलटी भी नी देखर होलू अब। गो सुन करी कनके बसोला कुड़ी शहर मां, अपणी भाषा भूली कन बोल लेंदा शहर की भाषा । गो का बटा भूली के कन जाण लगया छोदा बटा बतीन, मेता भूली कर रोंदा गुमजवारू उन। जे चौक मा नालोडा ओर लोग बैठया रोंदा छा , तो देखी ता तख आज घास जमी छो । जै भीतरू मनखी रोंदा छा, तख मुशुन अपणु घोर जमेली। ज्यूँ पुंगुरू मा सदा अनाज रोंदू छो, तख बसेलु घासन आणु बड़ेली। कन पैसा वे कन शहर वे, जख पाणी भी बीन पैसान नी मीलदू। यख मनखी मनखी नी रे , सब मनखियों मा स्वार्थ वैगी। ©Shivani Thapliyal पहाड़