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कुछ यादगार पन्ने वो हमारी कविता, जिसे पढ़ पढ़ कर मै

 कुछ यादगार पन्ने वो हमारी कविता,
जिसे पढ़ पढ़ कर मैं हूँ आज भी जीता..!
वो लम्हें पुराने वो यादें हमारी,
न जाने वो कैसी रही थी ख़ुमारी..!
वो भोलापन मेरा शरारतें तुम्हारी,
छपी हैं ज़हन में वो मुलाक़ातें हमारी..!
मेरे नाम के बाद तेरा नाम वो लिखना,
कभी रहना समीप कभी कभी छुपना..!
वो बच्चों सी हरकत अजब सी कहानी,
वो नदिया किनारे हवाएं सुहानी..!
वो मिटटी की खुशबू थी जानी पहचानी,
जहाँ से शुरू हुई हमारी कहानी..!
वो छुप छुप कर गलियों में अजनबियों सा मिलना,
फिर हाथ पकड़ कर संग में चलना..!
वो सफर यूँ ही संग में बिताना,
याद आता है मुझे वो फिर से ज़माना..!
मुरझा गए हैं पन्ने भी याद में,
फूल से खिलते थे कभी जो साथ में..!
आखिरी पन्ने की अपनी अलग है कहानी,
मेरे नाम के नीचे तुम्हारे होंठो की निशानी..!
मुझको वो एक पैगाम दे रहे हैं,
ये पढ़ कर चाहने वाले मुझे बदनाम कह रहे हैं..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #Chalachal #panne