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उम्मीदों के आंगन में हालत की आंधी से चाहत के बुझते

उम्मीदों के आंगन में हालत की आंधी से चाहत के बुझते दिए देखता हूं
अब तो टेलीविजन पर मैं मौसम की खबरों में तुमको बदलते हुए देखता हूं

महीनों से दिन रात आती हुई हिचकियां भी तो अब कम सी होने लगी हैं
तुम्हारे तसव्वुर में मैं अपनी यादों की आमद को घटते हुए देखता हूं

तुम्हें क्या पता है कि क्यूं अमरीका और कोरिया में सुलह हो गई है
मैं इसमें भी अपनी मुलाकात का ख्वाब तामीर होते हुए देखता हूं।।

उम्मीदों के आंगन में हालत की आंधी से चाहत के बुझते दिए देखता हूं अब तो टेलीविजन पर मैं मौसम की खबरों में तुमको बदलते हुए देखता हूं महीनों से दिन रात आती हुई हिचकियां भी तो अब कम सी होने लगी हैं तुम्हारे तसव्वुर में मैं अपनी यादों की आमद को घटते हुए देखता हूं तुम्हें क्या पता है कि क्यूं अमरीका और कोरिया में सुलह हो गई है मैं इसमें भी अपनी मुलाकात का ख्वाब तामीर होते हुए देखता हूं।। #Shayari

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