क्या सच में वो तुम ही थी बताओ ना क्या तुम लौट आयी थी आज सुबह जब आंखे खोली थी मैंने तो तुम्हारे होने का एहसास हुआ था तुम्हारे ड्रेसिंग टेबल का दराज आधा खुला हुआ था तुम्हारी तस्वीर से लगी वो फूलों वाली माला जमीन पर पड़ी थी बोलो ना ,तुम आ रही थी वापस ये इशारा था ना तुम्हारा तुम बोलती तो खुद आ जाता मैं मायके में गुस्सा हो कर कितनी बार गयी थी तुम पहले भी तो लौट आती थी तुम मेरे मनाने पर मानाकि बहुत उलझा हुआ था मैं पर तुम मुझे सुलझा तो सकती थी इस तरह तुम क्यों चली गयी थी देखो ,मेरी दाढ़ी सफेद हो रही है तुम्हारी चूड़ियों की खनक अब सुन नही पा रहा लौट आओ अब सात जन्म की सात कसमे खायी थी साथ में फिर क्यों चली गयी किचन से प्रेसर कुकर की आवाज क्यों नही आती अब क्यों मेरे बिछावन की सिलवटों में तेरा एहसास नहीं होता अब क्यों कोई रात मुझे सुला नहीं पाती क्यो कोई सुबह मुझे जगा नहीं पाती देखो, बहुत कर ली अपनी अब अपने अस्थि-कलश से निकलकर या दीवार की तस्वीर से निकलकर लौट आओ अब दरवाजे खुले हुए है लौट आओ अब—–अभिषेक राजहंस #NojotoQuote लौट आओ अब