पढ़ते तो तुम भी होगे ना जब जब मैं तुमको लिखती हूं, कैसे रुक पाते हो तब तुम, जब जब मैं तुमको पढ़ती हूं। चाय सुबह की ठंडी होती अक्सर मुझसे रूठा करती है उसकी उड़ती भाप में भी मैं तेरा अक्स बनाया करती हूं। दिन तो काट लिया करती हूं,बेफिजूल के कामों में, रातें तन्हां हो जाती हैं, बस करवट बदला करती हूं। कैसे बढ़ते हैं आगे रिश्ते में,कैसे भूले जाते हैं वादे, क्यूं ना सिख सकी अबतक मैं,अक्सर सोचा करती हूं। ©शफ़क रश्मि #मैं_और_तुम #मैं_और_मेरे_जज़्बात #मैं_और_मेरे_एहसास