#OpenPoetry कभी कोई किस्से अधूरे रह जाते है ,,,कभी बाते अधूरी रह जाती है,,,कभी राह चलता मुसाफिर अपना सा लगता है,,,कभी अपनो के भीड़ मे मैं सब से परायी लगती हूं,,,, कभी लगता है हर कोई समझता है मुझे कभी कभी मैं खुद ही खुद को समझने में व्यस्त हो जाती है ,,,,,कभी लगता है जो है सब पर्याप्त है ,तो कभी सब कुछ अधूरा सा लगता है ,,,कभी लगता है मैं सब जैसी हूँ तो कभी कभी खुद को सबसे जुदा पाती हूँ ,,,,,कभी लगता है माँ की लाडली और पिताजी की गुड़िया हूँ तो कभी लगता है नही मैं तो परायी कोई चिड़िया बस कुछ दिन संग उनके रहने को आयी हुँ,,,, कभी कभी राहो में अकेले चलना अच्छा लगता है तो कभी उन्ही राहो पर किसी अपने को तलाशती हूँ ,,,,कभी लगता है पैसा बस जरूरत है खुशी नही फिर उसी पल ऐसा लगता है माँ के चेहरे पर हँसी भी मेरे दी हुई साड़ी से ,पहले से ज्यादा चमक लायी है,,,कभी लगता है मैं भी सो जाऊ किसी के काँधे पर सिर रख फिर उसके काँधे का दर्द मुझे तकिये पर खींच लायी है।।। आओ सब भूल जाते है ,,,चलो ना कोई नई गीत लिखते है,,,तुम सुनना मैं गाऊँगी ,तुम्हारे होठो पर नई सी मुस्कान आएगी ,सुनो सच कहती हूँ,, इन होठो के लिए मैं सारी रात गाऊँगी ।।अच्छा सुनो ,तुम सो जाना मैं तुम्हारी करवट को बदलते हुए, उस मुस्कान को तुम्हारे सपनो में लाऊँगी ।। आओ सब भूल जाते है। चलो ना कोई नई गीत लिखते है।।