गगन की गरिमा को छू लूं ! मां के आंचल की गरिमा में झूलू़ं बरसते बदरा के गरिमा को आंखों से ही मैं पी लूं ! जमीन की सोंधी खुशबू की गरिमा में मैं तो खेलूं गगन की गरिमा को छू लूं पुरवाई के झोंकों में मैं प्रेम रस की गरिमा रस घोलूं! बंधी हुई गांठें जीवन की , हर पल में प्रेमी बन खोलूं गगन की गरिमा को छू लूं ! प्रमोद पंडित अमेठी उत्तर प्रदेश गरिमा