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क्या पाने की हसरत थी जो खुद को ही खो दिया टूट कर

क्या पाने की हसरत थी 
जो खुद को ही खो दिया 
टूट कर बिखरा मन बच्चे सा रो दिया 
जो भी आया हाथ वो रेत सा फिसल गया 
समय के बहाव में कोसों दूर निकल गया 
अबतक अपरिचित रहा मैं जीवन के इस रूप से 
कट गई आधी उम्र कभी छांव कभी धूप से 
फिर भी ग़म-ए-ज़िंदगी तेरी कद्र करता हूं 
मैं बस सब्र करता हूं।

©KUSHAL
  मैं बस सब्र करता हूं।
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 Sethi Ji अदनासा- vineetapanchal Anshu writer ᴩᴏᴏᴊᴀ ᴜᴅᴇꜱʜɪ