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प्रेमी या पति... 👇👇👇👇 तोड़ रही हूँ मैं तो रस्

प्रेमी या पति...
👇👇👇👇 तोड़ रही हूँ  मैं तो रस्में सारी, कसमें भी खाई थी जो संग तुम्हारे।
मिटा रही हूँ दिल से मैं अपने, पाए है जो तुमसे प्रेम को ये सारे।।1

अमिट प्रेम भी मिट जायेगा हमारा, धुधली पड़ जायेगी तस्वीर तुम्हारी।
सात फेरा संग लूंगी जब सातों वचन, दूर हो जायेगी सदा नेह तुम्हारी।।2

जैसे है शब्द प्रेम अधूरा, वैसे ही रह गई अपनी भी अधूरी प्रेम कहानी।
चाहत के मौसम कुछ पल के, बाक़ी अब लगते जैसे आँखों में है पानी।।3
प्रेमी या पति...
👇👇👇👇 तोड़ रही हूँ  मैं तो रस्में सारी, कसमें भी खाई थी जो संग तुम्हारे।
मिटा रही हूँ दिल से मैं अपने, पाए है जो तुमसे प्रेम को ये सारे।।1

अमिट प्रेम भी मिट जायेगा हमारा, धुधली पड़ जायेगी तस्वीर तुम्हारी।
सात फेरा संग लूंगी जब सातों वचन, दूर हो जायेगी सदा नेह तुम्हारी।।2

जैसे है शब्द प्रेम अधूरा, वैसे ही रह गई अपनी भी अधूरी प्रेम कहानी।
चाहत के मौसम कुछ पल के, बाक़ी अब लगते जैसे आँखों में है पानी।।3