पंखुड़ी (भाग 2) शाम को वो लड़की काव्य को फिर अपनी खिड़की पर ख़डी हुई दिखी, उसकी आँखों में एक चमक थी जैसे जिंदगी की नयी शुरुआत की रह तक रही हो..उसने काव्य को देखा दोनों एक दूसरे को देख के मुस्कुराये तभी पीछे से रमेश आ गया... उसने खिड़की बंद करदी काव्य भी अपनी खिड़की को बंद कर अब किताबें पढ़ने लगी | काव्य जहाँ रहती है वहाँ की गलियां बहोत संकरी सी थी .. खिड़कियों के बीच ज्यादा दूरी नहीं थी चाय पीने से लेकर अब तक उसमे दिमाग़ मे जो सवाल उमड़े वो फीर घूमने लगे अचानक उसे खिड़की से आवाजें आने लगी "चीखें "उस लड़की की काव्य जो खुद सहम जाती थी शादी के नाम से अब ओर सहम सी गयी, इन चीखों को नजरअंदाज करके अपने कानो में इयरफोन लगा वो बिस्तर पर लेटे लेटे छत पर लगे पंखे को देखती रही. |||सुबह उठकर काव्य ने रोज की तरह अपनी खिड़की खोली पर उसके सामने वाली खिड़की बंद थी.... काव्य काव्य नीचे से आवाज आयी "जल्दी चाय पि ले रमेश के यहाँ चलते है फिर उसने शादी मे न बुलाया पर मुँह दिखाई तो देके आनी ही पड़ेगी " अपने सवालों को लिये काव्य अपनी माँ के साथ जाती है खिड़कियों से हुए काव्य ओर उसे लड़की के बीच हुए मुस्कान के आदान प्रदान से उन दोनों के बीच जैसे कोइ रिश्ता सा बन गया है......... (जारी ) #पंखुड़ी भाग 2