आओ अपने मुखौटे आज उतारे अपना असली स्वरूप हम उघाड़े। पर्दे जो जो चढ़े हैं निर्मल रुह पर इक इक कर उन सबको आज उतारें। बात नहीं करे़गे पांच तत्व पच्चीस प्रकृतियों की हम तो उजागर करेंगे ओढ़ी हुई विकृतियों की। मन कुछ मुख कुछ और इस पर करेंगे आज कुछ गौर। कथनी जैसी वैसी करनी करेंगें जब हमने किया है तो हम ही भरेंगें। मुख में राम बगल में छुरी गाँठ बाँध लो बात है ये बुरी। जो पीठ पीछे मुँह पर वही बात करेंगे। निंदा चुगली और नुकताचीनी समझ लें ये बात है बड़ी कमीनी। सरल हृदय से स्पष्ट सही बातें कटे सकून से दिन चैन से रातें। जब इक इक चेहरे पे हैं कितने ही चेहरे मेरे मुँह पर मेरे हैं तेरे मुँह पर हैं तेरे। मतलब में खंड मिश्री हो जायें घी खिचड़ी वरना तोते की तरह ये हरजाई मुँह फेरे। मुख उजल दिल अति काला जीभ अमृत मन विषियर नाग काला। आज मन का फन कुचल डारें। आओ अपने मुखौटे आज उतारें अपना असली रूप हम उघाड़े। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 22.07.2020 मुखौटे