दीदार-ए-इश्क तुम्हे चाहना और फिर भुल जाना यह मुमकिन तो नहीं , समझा करो । तुम्हारे सुरत के सिवा कुछ और देखुँ यह मुमकिन तो नहीं ,समझा करो। चाँद भी ज़रा पिघला होगा तुमसे दीदार करने को , फ़़कत एक ज़माने में मुकम्मल हो इश्क यह मुमकिन तो नहीं , समझा करो। रोशनदान से झाँकती रोशनी जिस्म छुना चाहती हैं , और मेरी निगाहें तराशें भी न यह मुमकिन तो नहीं , समझा करो। बीन तुम्हारे न सुबह हो न मेरा कोई भी शाम बीते , फिर तुम्हारे ख्वाब में भी न आऊं यह मुमकिन तो नहीं , समझा करो । तुम महल की राजकुमारी , कीस्सों की किरदार हो , तुमसे इश्क में खून बहे न यह मुमकिन तो नहीं , समझा करो । इश्क तुमसे कर रहा हूं और करता ही रहूंगा , राख मेरा नाम तुम्हारा न ले यह मुमकिन तो नही , समझा करो। The ghazal of RAG #दीदार_ए_इश्क़ #yqdidi #yqbaba #yqquotes #yqhindi #yqurdu #yqghazal Collab open