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खुद से मिलकर अब खुद में जीना चाहती हूं, नाराज नहीं

खुद से मिलकर अब खुद में जीना चाहती हूं,
नाराज नहीं हूं पर हां गमो से दूर रहना चाहती हूं।
पता है जिंदगी में सुकून का आलम नहीं मिलता,
मै अपने मन की आशाओं को समझना चाहती हूं।
न परवाह हद से ज्यादा सबकी, न जिद रिश्तों में चाहती हूं,
जो समझे इस मन की व्यथा बस उन्हीं का साथ चाहती हूं।
राह इक नई ,नई उम्मीद जगाना चाहती हूं,
पत्थर नहीं हूं मगर पत्थर सा बनकर रहना चाहती हूं।
हां अब मै खुद के लिए खुद में जीना चाहती हूं।

©Ritu shrivastava #nayikiran Aasha ki
खुद से मिलकर अब खुद में जीना चाहती हूं,
नाराज नहीं हूं पर हां गमो से दूर रहना चाहती हूं।
पता है जिंदगी में सुकून का आलम नहीं मिलता,
मै अपने मन की आशाओं को समझना चाहती हूं।
न परवाह हद से ज्यादा सबकी, न जिद रिश्तों में चाहती हूं,
जो समझे इस मन की व्यथा बस उन्हीं का साथ चाहती हूं।
राह इक नई ,नई उम्मीद जगाना चाहती हूं,
पत्थर नहीं हूं मगर पत्थर सा बनकर रहना चाहती हूं।
हां अब मै खुद के लिए खुद में जीना चाहती हूं।

©Ritu shrivastava #nayikiran Aasha ki