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कैसे कह दूं नीरस तुझको।। खुशियों के मोती चुने तुम

कैसे कह दूं नीरस तुझको।।

खुशियों के मोती चुने तुमने,
हर ख़्वाब मेरे हैं बुने तुमने,
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

हर राह मेरी है गढ़ी तुमने,
मन की पुस्तक भी पढ़ी तुमने।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

अश्कों को रोका हंस कर,
हमदर्द हमसाया बन कर।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

मैं नाव तो तू पतवार रहा,
मैं गीता तो तू सार रहा।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

खुशी में भी पीड़ा में भी,
अल्हड़ता और क्रीड़ा में भी।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

मैं दीप रहा तू बाती था,
मैं सांध्यगीत तू प्राती था।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

मैं नग्न रहा आवरण तू मेरा,
मैं तुच्छ रहा आचरण तू मेरा।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

मैं एक कवि तू कविता मेरी,
मैं भाव रहा तू भविता मेरी।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

मैं एक कलम तुम रोशनाई,
तुम छंद दोहा और सवाई।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

तू है, जो आज मैं लिखता हूं,
शब्द-श्रृंगृत यहां जो बिकता हूँ।
ऐ जीवन कैसे कह दूँ नीरस तुझको।

जिह्वा मेरी तू नेपथ्य से बोल रहा,
आंखें मेरी तू सबको है तोल रहा।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।।

वर्णन ये कहाँ समाये पन्नो में,
मेरी खूबी कहाँ है सेठ धन्नो में।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तूझको।

जो आज हुआ वाचाल जाता हूँ,
शब्दों का अंत कहीं न पाता हूँ।
बोलो फिर कैसे कह दूं नीरस तुझको।।

©रजनीश "स्वछंद" कैसे कह दूं नीरस तुझको।।

खुशियों के मोती चुने तुमने,
हर ख़्वाब मेरे हैं बुने तुमने,
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

हर राह मेरी है गढ़ी तुमने,
मन की पुस्तक भी पढ़ी तुमने।
कैसे कह दूं नीरस तुझको।।

खुशियों के मोती चुने तुमने,
हर ख़्वाब मेरे हैं बुने तुमने,
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

हर राह मेरी है गढ़ी तुमने,
मन की पुस्तक भी पढ़ी तुमने।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

अश्कों को रोका हंस कर,
हमदर्द हमसाया बन कर।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

मैं नाव तो तू पतवार रहा,
मैं गीता तो तू सार रहा।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

खुशी में भी पीड़ा में भी,
अल्हड़ता और क्रीड़ा में भी।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

मैं दीप रहा तू बाती था,
मैं सांध्यगीत तू प्राती था।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

मैं नग्न रहा आवरण तू मेरा,
मैं तुच्छ रहा आचरण तू मेरा।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

मैं एक कवि तू कविता मेरी,
मैं भाव रहा तू भविता मेरी।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

मैं एक कलम तुम रोशनाई,
तुम छंद दोहा और सवाई।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

तू है, जो आज मैं लिखता हूं,
शब्द-श्रृंगृत यहां जो बिकता हूँ।
ऐ जीवन कैसे कह दूँ नीरस तुझको।

जिह्वा मेरी तू नेपथ्य से बोल रहा,
आंखें मेरी तू सबको है तोल रहा।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।।

वर्णन ये कहाँ समाये पन्नो में,
मेरी खूबी कहाँ है सेठ धन्नो में।
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तूझको।

जो आज हुआ वाचाल जाता हूँ,
शब्दों का अंत कहीं न पाता हूँ।
बोलो फिर कैसे कह दूं नीरस तुझको।।

©रजनीश "स्वछंद" कैसे कह दूं नीरस तुझको।।

खुशियों के मोती चुने तुमने,
हर ख़्वाब मेरे हैं बुने तुमने,
ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।

हर राह मेरी है गढ़ी तुमने,
मन की पुस्तक भी पढ़ी तुमने।