खिन्न थी आज कुछ धरती माँ, बौखला उठी आसमां पर! आज वो अपनी चुप्पी तोड़ ही दी, दिल की सारी बातें बोल ही दी, पर प्यार से नहीं,आक्रोश से, थी सहज पर हाँ बेबाकी से, जायज था उनका क्रोध भी, सह रही है वो कितना बोझ भी, जग की माता वो कहलाती है, हां,विश्व का भार उठाती है!! *** ◆संवाद◆ ★★★★★★★★★ READ IN CAPTION👇 ★संवाद★ 🌎धरती(आसमां से)-तुम्हें कोई फ़र्क क्यों नहीं पड़ता? ●देख रहे हो तुम ऊपर से यहाँ सब जल रहे हैं! ●सारे जीव-जंतु बूँद-बूँद पानी को तरस रहे हैं! ●जमीन बंजर हो गयी है,खेती भी चौपट हो गयी है! ●पंक्षी बिन पानी त्राहि त्राहि कर रहे हैं! ●तालाब सारा सूख गया,नदी तालाब बन के रह गयी!