जब तक है सोच दिल में ऐसी क्या खाक देश बदलेगा। तुम मां को मां नहीं समझते फिर धरती को माँ कौन समझेगा।। आजकल इन गालियों का इस्तेमाल तो इतना खुले आम होता है जैसे सब्जी में नमक मिर्च डाला जाता है. छोटे बड़े का कोई लिहाज़ ही नहीं रहा। यह जुबान आपको ज़मीं से ऊपर उठा भी सकती है और ज़मीं पे गिरा भी सकती है. इसे हरदम केंची की तरह मत चलाइये. गालियों से आपकी बनी बनाई इज्ज़त मिट्टी में मिल ज़ाती है। अपने आप को इतना मत गिराइए कि उठना ही मुश्किल हो जाये. आपको तो दूसरों को अच्छी शिक्षा और अच्छी भाषा की मिसाल देनी चाहिए, और आप हैं खुद ही अपनी जुबान को गन्दा कर रहे हैं. गुस्सा कीजिये, पर अपनी तहज़ीब को मत भूलिए। "हुजुर यहाँ से तशरीफ़ ले जाइये, अगर हमने गलती से आपको चांटा रसीद कर दिया तो आपके दन्दाने मुबारक टूट कर ज़मीं में खाक हो जायेंगे”.