रात ख़्वाबों में अक्सर चाँद बात करता है, कोई कैसे यहाँ ग़ुरबत में घात करता है, हर जगह लोग हैं अच्छे-बुरे महसूस हुआ, यूँही निज स्वार्थ में कुछ जात-पात करता है, विरह में जाग कर कैसे तमाम रात कोई, इश्क की याद में शब-ए-बारात करता है, बिना मिले ही करे इन्तज़ार जीवन भर, शाम ढलते ही आफ़ताब रात करता है, मिटा देता है 'गुंजन' मुसाफ़िर वज़ूद अपना, निभाए सातों वचन ख़ुद निज़ात करता है, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra #ग़ुरबत में घात करता है#