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इश्क़ इबादत जब बन जाए तो दुःख काहे को होय, हर उस ब

इश्क़ इबादत जब बन जाए तो दुःख काहे को होय, 
हर उस बढ़ते "भ्रम" से अब तो और मोहब्बत होय..  कितना शुद्ध होता होगा सच्चा इश्क़.. शायद जैसे अच्छी आत्माएं और बुरी आत्माएं होती है वैसे ही सच्चा इश्क़ और दिखावा भी अस्तित्व रखते होंगे अपना..  बिना कोई उम्मीद अपनों की ख़ुशी मे खुश हो जाना और उनसे कोई उम्मीद न रख पाना पर ये भी जानना के मेरा ख़याल वो रख ही लेगा इतना ही आसान होता होगा इश्क़ शायद.. कुछ पंक्तिया याद आ गई इससे "हमनवा" गाने की:
"मुरझाई सी शाख पे दिल की
फूल खिलते हैं क्यूँ
बात गुलों की ज़िक्र महेक का
अछा लगता है क्यूँ
उन रंगो से तूने मिलाया
जिनसे कभी मैं मिल ना पाया
दिल करता है तेरा शुक्र
इश्क़ इबादत जब बन जाए तो दुःख काहे को होय, 
हर उस बढ़ते "भ्रम" से अब तो और मोहब्बत होय..  कितना शुद्ध होता होगा सच्चा इश्क़.. शायद जैसे अच्छी आत्माएं और बुरी आत्माएं होती है वैसे ही सच्चा इश्क़ और दिखावा भी अस्तित्व रखते होंगे अपना..  बिना कोई उम्मीद अपनों की ख़ुशी मे खुश हो जाना और उनसे कोई उम्मीद न रख पाना पर ये भी जानना के मेरा ख़याल वो रख ही लेगा इतना ही आसान होता होगा इश्क़ शायद.. कुछ पंक्तिया याद आ गई इससे "हमनवा" गाने की:
"मुरझाई सी शाख पे दिल की
फूल खिलते हैं क्यूँ
बात गुलों की ज़िक्र महेक का
अछा लगता है क्यूँ
उन रंगो से तूने मिलाया
जिनसे कभी मैं मिल ना पाया
दिल करता है तेरा शुक्र