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यक़ीनन, उसने फिर मेरे खिलाफ़ ज़रूर कोई न कोई साज़

यक़ीनन, 
उसने फिर मेरे खिलाफ़
ज़रूर कोई न कोई
साज़िश की होगी!
शबनम के कतरों से लिखें होंगे
सबाओ पे खत 
और फ़िर
मुझ तक पहुंचने की 
पुरी ज़ोर की होगी
बेचारा, दिल ही तो है
बहक गया होगा
इस दिल की भी
कोई ख्वाहिश अधूरी रही होगी।

©Rakesh Kumar Das
  #यकीनन#Affection