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मन की उलझने! ना जानें क्यों मन बार- बार उस ही

मन की उलझने!

ना जानें क्यों मन बार- बार   उस  ही मंज़िल जाने को कहता हैं। 
जो कि पता हैं वहा जाना बहुत मुश्किल होगा, क्यों की दिल और दिमाग़ दोनों का योगदान होना जरूरी हैं।
मुझे पता हैं शायद मैं वहा से खाली या कुछ ना कुछ मिल भी सकता हैं, ना जाने क्यों।। 
जहाँ से शुरू होंगी, वही जा कर ख़तम होंगी। 
क्योंकि मन, मन को ही समझ सकता हैं।। 
                                           #अंजलि शर्मा# #InspireThroughWriting
मन की उलझने!

ना जानें क्यों मन बार- बार   उस  ही मंज़िल जाने को कहता हैं। 
जो कि पता हैं वहा जाना बहुत मुश्किल होगा, क्यों की दिल और दिमाग़ दोनों का योगदान होना जरूरी हैं।
मुझे पता हैं शायद मैं वहा से खाली या कुछ ना कुछ मिल भी सकता हैं, ना जाने क्यों।। 
जहाँ से शुरू होंगी, वही जा कर ख़तम होंगी। 
क्योंकि मन, मन को ही समझ सकता हैं।। 
                                           #अंजलि शर्मा# #InspireThroughWriting