______बीज_से_बचो______ यह सोच कि जिस-जिस को समझा भला, वही बार-बार जला, वही निकला नोचने वाला, चोर आज रात है घुटन घोर, जिससे मुक्ति पाने को कविता की ओर मैं चल पड़ा..., जिसे देख करीबी कुत्ता जल पड़ा और भोंकने लगा। इस कदर कुत्ता भी देर तक जगा दखल देने को मेरे लेखन में मगर उसकी बुराई को मैंने हथियार बना डाला एक और कविता के रूप में मार्च की धूप में। इस प्रकार बेशक पलभर में पिघल जाऊंगा बेशक दफ़ना दोगे दोबारा निकल जाऊंगा क्योंकि मैं बीज हूं...। ...✍️विकास साहनी ©Vikas Sahni #बीज_से_बचो