श्रद्धाहीन श्राद्ध ●●●●●●●● चल रहा है पितृ पक्ष श्राद्ध कर रहे लोग। नाना प्रकार व्यंजनों का लगा रहे हैं भोग।। किन्तु बहुत जन हैं ऐसे जो कर रहे हैं मन से। पर जब मात पितु थे जीवित तब टूटे हुए थे उनसे।। जीवित में तो पूछते नहीं उन्हें दो समय रोटी। अनदेखी करते हैं उनकी हरकत करते छोटी।। पर जब होता स्वर्गवास तब अनुष्ठान बहु करते हैं। तेरहवीं, बसरी और श्राद्ध सब मजबूरी में करते हैं।। पितृदोष के भय के कारण श्राद्ध किया करते हैं। जीवित पर अनदेखी उनकी अब मरने पर डरते हैं।। यह तो है कर्तव्य व्यक्ति का करो इसे सच्चे मन से। आग्रह है अवधेश का यह भारत के हर जन से।। पर सुनो जब तक जीवित हैं तुम्हारे पिता और माता। उनके आगे नगण्य है इस संसार का प्रत्येक नाता।। सेवा करो जीते जी उनकी आदर और प्रेम के साथ। तुम्हारे शीश पे सदा रहेगा उनके आशीष का हाथ।। और मृत्यु बाद श्राद्ध करो उसी भाव के साथ। मानसिक रूप से ही उनके चरणों में नवाओ माथ।। मात पिता की सेवा से हीन सुखी नही हो सकता। श्रद्धाहीन श्राद्ध से भी कल्याण नही हो सकता।। ✍️अवधेश कनौजिया© श्रद्धाहीन श्राद्ध ●●●●●●●● चल रहा है पितृ पक्ष श्राद्ध कर रहे लोग। नाना प्रकार व्यंजनों का लगा रहे हैं भोग।। किन्तु बहुत जन हैं ऐसे