गुजरो तो तुम कभी मेरे यूं ही रिहाईश की गली से खिल जाते हैं कैसे फूल तेरे कदमों की धमक से कहां क्या समझ तुम्हें है मेरे धड़कन के जुबां का तुम्हें देखते ही दिल को जैसे मिल जाता है पता मंजिल का कब तक मुझे तुम खुद दूर रखोगे दर्पण की तरह तुम्हें देखता रहूंगा याद रखना तुम भी महसूस करोगे हर वक्त तुझमें मैं मौजूद रहूंगा #कृष्णार्थ ©KRISHNARTH #मंजिल